‘आवारा हूं… आवारा हूं… या ग़र्दिश में हूं, आसमान का तारा हूं.’ लेकिन जिनकी ये दास्तान है. वे न आवारा हुए और न उनके सितारे ग़र्दिश में रहे. हां, आसमान का तारा ज़रूर हुए. जब मौज़ूदगी रही तब और अब जबकि ज़िस्मानी ग़ैरमौज़ूदगी है, तब भी. नाम एक से ज़्यादा हुए उनके और अपने क़रीब-क़रीब हर नाम की तरह उन्होंने इस दुनिया में क़िरदार अदा किया. मसलन- जब 14 दिसंबर 1924 की तारीख़ को पेशावर (अब पाकिस्तान में) के क़िस्सा-ख़्वानी बाज़ार की ‘कपूर हवेली’ में पैदाइश पाई, तो मां-बाप ने नाम दिया ‘सृष्टिनाथ’.