डॉ कीर्ति काले,नई दिल्ली

किस्से कवि सम्मेलनों के – 15

रिस्क है तो इस्क है- डॉ कीर्ति काले,नई दिल्ली

4 जुलाई से 7 अगस्त 2018
बात उस समय की है जब मैं,डॉ सुरेश अवस्थी और सरदार मंजीत सिंह हम तीनों एक महीने के लिए अमेरिका एवं कनाडा की कवि सम्मेलनीय यात्रा पर गए थे।सभी कार्यक्रमों के संयोजक सरदार मंजीत सिंह थे।हवाई जहाज द्वारा हमने दिल्ली के इन्दिरा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से टोरंटो के लिए उड़ान भरी। डॉ सुरेश अवस्थी जी और सरदार मंजीत सिंह के साथ भारत में कई मंच साझा किए थे लेकिन एक महीने के विदेशी दौरे पर इनके साथ पहली बार जाना हुआ।नई दिल्ली से टोरंटो का सफर बहुत आराम से कट गया। टोरंटो हवाई अड्डे पर कवि एवं योग शिक्षक श्री सन्दीप त्यागी ने हमें रिसीव किया।भारत में बिजनौर के मूल निवासी सन्दीप त्यागी जी बहुत खुशमिजाज और कर्मठ व्यक्ति लगे।कनाडा का टोरंटो शहर बिल्कुल भारतीय महानगरों की तरह घनी आबादी वाला शहर है। भारतीय मूल के लोग भी इतने अधिक हैं टोरंटो में कि वहाँ विदेश में होने का बिल्कुल भी बोध नहीं होता। टोरंटो से ट्रेन द्वारा हमें कनाडा की राजधानी ओटावा जाना था।इस काव्य यात्रा का पहला कवि सम्मेलन ओटावा में निर्धारित था। कनाडा की ट्रेन बिल्कुल दिल्ली की एक्सप्रेस मेट्रो की तरह थी। हाँ भीड़- भाड़ यहां की अपेक्षा बहुत कम थी वहां पर।लगभग साढ़े तीन घंटे में हम टोरंटो से ओटावा पहुंँचे। ओटावा में उसी दिन शाम को कवि सम्मेलन था।जिनके घर हम ठहरे थे कवि सम्मेलन भी उन्हीं के घर में था।लगभग डेढ़ घंटे का कुल कवि सम्मेलन हुआ। श्रोता भी लगभग बीस पच्चीस ही थे। ये एक तरह से हमारी रिहर्सल थी।अगले दिन ओटावा घूमें और उसके अगले दिन कार द्वारा मॉन्ट्रियल के लिए चल दिए। मॉन्ट्रियल के कल्चरल सेंटर में कवि सम्मेलन था।अभी तक पूरी यात्रा में खूब आनन्द आ रहा था। कनाडा बहुत सुन्दर और आधुनिक देश है।यहाँ प्रवासी भारतीयों की संख्या भरपूर है विशेषकर पंजाबियों की।वापस ब्रॉम्टन आकर ‘जो टोरंटो का सबर्ब है’ हम श्री राकेश तिवारी जी के घर ठहरे।श्री राकेश तिवारी जी “कनाडा टाइम्स” हिन्दी अखबार प्रकाशित करते हैं।अब उन्होंने एक टीवी चैनल भी प्रारम्भ किया है। सरदार मंजीत सिंह का संयोजकीय कौशल प्रशंसनीय था। उनके सभी आयोजकों के साथ प्रेमपूर्ण सम्बन्ध थे।चूंकि सरदार मंजीत सिंह पिछले अनेक वर्षों से कनाडा में कवि सम्मेलनों का संयोजन करते रहे थे इसलिए उनके लिए सबकुछ जाना पहचाना था। टोरंटो में दो कवि सम्मेलन सफलतापूर्वक सम्पन्न हुए।इस दौरान विश्व प्रसिद्ध नियाग्रा फॉल्स देखने का सौभाग्य भी प्राप्त हुआ।कनाडा की तरफ से नियाग्रा फॉल्स को देखना अत्यन्त रोमांचक है।इतनी विशाल जलराशि का कई किलोमीटर नीचे खाई में निर्बाध रूप से गिरने से दृश्य उपस्थित होता है वो अत्यन्त मनोहारी है।इतने बडे झरनों के गिरने की आवाज़ तो ऐसी आती है जैसे लाखों करोड़ों ड्रम्स एक साथ एक लय में बज रहे हों। सचमुच प्रकृति का करिश्मा है नियाग्रा फाल्स।वहाँ हमने खूब सारे फोटो खींचे, जमकर वीडियोग्राफी की।शाम को जब हल्का हल्का अन्धेरा होने लगा तब आतिशबाजी प्रारम्भ हुई। धीमे-धीमे संगीत की स्वर लहरियों के साथ नीली,लाल,हरी बैंगनी पीली रोशनियां अद्भुत मनोरम वातावरण निर्मित कर रही थीं। बहुत सारे देशी, विदेशी पर्यटक खूब आनन्द के साथ नियाग्रा फाल्स की रोमांचकारी छटा का आनन्द ले रहे थे। चूंकि अगले दिन हमें सड़क मार्ग द्वारा अमेरिका के न्यूयार्क के लिए रवाना होना था इसलिए हम न चाहते हुए भी यथा समय नियाग्रा फॉल्स से कार द्वारा ब्राम्टन स्थित श्री राकेश तिवारी जी के घर लौट आए।अगले दिन सन्दीप त्यागी जी और श्री राकेश तिवारी जी से आज्ञा लेकर हम तीनों मंच के महारथी अमेरिकी मंचों पर धावा बोलने बस में बैठकर सड़क मार्ग द्वारा न्यूयॉर्क की ओर चल दिए।रात में लगभग बारह, साढ़े बारह बजे कनाडा और अमेरिका की बॉर्डर पर बने इमीग्रेशन प्वॉइंट पर हमारी बस रुकी। यहीं पर कहानी में खतरनाक मोड़ आया।

आप जानते ही हैं कि अमेरिका वालों की जाँच पड़ताल बहुत कड़क होती है।इसका मुझे पूर्व अनुभव था।सन् 2010 में जब श्री सुरेन्द्र दुबे जी, मैं और गौरव शर्मा अमेरिका की काव्य यात्रा पर गए थे तब तो वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हवाई आतंकी हमले के घाव अमेरिकी व्यवस्था पर बिल्कुल ताज़ा थे।2010में हवाई जहाज से नीचे उतरते ही बड़े बड़े खूंखार कुत्ते झपटकर यात्रियों के अंग प्रत्यंगों का सूंघ सूंघकर बरीकी से मुआयना करते। फिर कितनी ही एक्सरे मशीनों से होकर गुजरना पड़़ता। सिक्यूरिटी ऑफीसर्स को इतने पर भी सन्तोष नहीं होता तो वे सरे-आम औरतों तक के कपड़े उतरवाकर चैक करते। वर्ल्ड ट्रेड सेंटर वाली घटनाओं के पश्चात अमेरिका सुरक्षा मामलों में अधिक सख्त और चौकन्ना हो गया है।जो मंचीय कवि कविसम्मेलन के मंच से अमेरिका को गरियाते हुए नहीं थकते वास्तविकता तो ये है कि उनमें से अधिकांश के पास पासपोर्ट तक नहीं है।वरना आकर देखते कि क्या है अमेरिका? और कैसा है दुनिया के दादा का दबदबा?

मंजीत सिंह,मैं और डॉ सुरेश अवस्थी जी आँखें मलते हुए बस से नीचे उतरे। तीनों ने अपना सामान उतारकर ट्रॉली पर रखा और सुरक्षा जाँच कराने लाइन में खड़े हो गए।हमारे सामान का एक्स रे हुआ, सिक्यूरिटी ऑफीसर ने हमसे अलग-अलग कुछ प्रश्न किए जैसे कहाँ से आए हैं? क्यों आए हैं?कहाँ जाना है? कितने दिन रुकना है?आदि आदि आदि। प्रश्नोत्तर के दौरान ही पासपोर्ट भी चैक किया और अपनी पैनी नजर से हमारा निरीक्षण किया। गज़ब ये हुआ कि मेरा और डा सुरेश अवस्थी जी का इमीग्रेशन तो क्लीयर कर दिया गया जबकि सरदार मंजीत सिंह को रोक लिया गया। मंजीत सिंह सारे कवि सम्मेलनों के संयोजक थे।सारी व्यवस्था उन्हीं की थी। और उन्हें ही रोक लिया! हमारे पास निर्णय लेने के लिए अधिकतम दो चार मिनिट ही थे।या तो हम दोनों वहीं से लौट जाएँ या संयोजक के बिना अपनी रिस्क पर आगे बढ़ें। एक तरफ कुंआ दूसरी तरफ खाई। बिल्कुल ऐसी ही स्थिति थी। लेकिन गुरु गोबिंद सिंह के पुत्तर को मानना पड़ेगा।मंजीत जी ने इस विकट परिस्थिति में बिना हड़बड़ाए बहुत आश्वस्ति और आत्मविश्वास के साथ हम दोनों से कहा कि आप दोनों अमेरिका जाईए। मैं आगे की सारी व्यवस्था कर दूंगा। आपको कोई तकलीफ़ नहीं होगी। डॉ सुरेश अवस्थी जी बहुत अनुभवी और मंजीत जी के घनिष्ठ मित्र हैं सो उन्होंने मुझसे पूछा- बोलो क्या करें? यहाँ से लौटना आसान है लेकिन ऐसा करने पर अमेरिका के सारे कवि सम्मेलन हमेशा के लिए सरदार के हाथ से निकल जाएँगे। अमेरिका के सभी आयोजक भी हमारे न पहुँचने से मुश्किल में पड़ जाएँगे। चूंकि डॉ सुरेश अवस्थी जी भारत में जागरण समूह के सिरीज़ में कवि सम्मेलन आयोजित करते रहे हैं इसलिए संयोजकीय परेशानियों से अच्छी तरह परिचित हैं। मुझे भी संयोजन का थोड़ा बहुत अनुभव है।ये सारी बातें तीन चार मिनिट में ही हो गईं। मैंने और डॉ सुरेश अवस्थी जी ने बिना संयोजक के अमेरिका जाने का अत्यन्त जोखिम भरा निर्णय लिया।पराये देश में ऐसी विकट स्थिति में किसी कवयित्री द्वारा संयोजक के बिना जाने के इस जोखिम भरे निर्णय के दुस्साहस को कोई माने या न माने लेकिन ये था अत्यन्त खतरनाक और रिस्की। पर मैं तो जन्म से ही खतरों की खिलाड़ी रही हूँ।हर्षद मेहता वैब सिरीज़ का एक डायलॉग फिट बैठता है इस सिचुएशन पर “रिस्क है तो इस्क है”।

मुझे तो बचपन से ही सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता कण्ठस्थ है
बुन्देले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।

आगे का लम्बा किस्सा संक्षिप्त में बताती हूँ।
अमेरिका के पन्द्रह शहरों में होने वाले कवि सम्मेलनों में सभी आयोजकों ने तीन कवियों को सुनवाने के लिए टिकिट बेचे थे।यहाँ हम दो ही रह गए।अब सारे कार्यक्रमों में तीसरी मुंडी कहाँ से लाएँ? समस्या विकट थी।पता चला कि पद्मविभूषण श्री गोपाल दास नीरज जी के सुपुत्र श्री शशांक प्रभाकर उन दिनों न्यूयॉर्क आए हुए हैं। न्यूयॉर्क और न्यूजर्सी के कार्यक्रमों के लिए उनसे आग्रह किया गया।वहाँ के कार्यक्रम शशांक जी के साथ सफलतापूर्वक सम्पन्न हुए। सुरेश अवस्थी जी ने मंजीत सिंह जी से सलाह करके मास्टर प्लान बनाया कि आगे के कार्यक्रमों के लिए भी शशांक भाई से आग्रह कर लेते हैं। शशांक जी से बात हुई वो मान भी गए।हम आश्वस्त हो गए।जब हम न्यूजर्सी में श्री अनूप भार्गव जी के घर उनके अतिथि थे तब अचानक रात के ग्यारह बजे फोन आया कि नीरज जी हॉस्पिटलाइज्ड हो गए हैं।उनकी स्थिति गम्भीर है।अब शशांक जी का भारत लौटना तय था।सो शशांक प्रभाकर जी ने फटाफट नई दिल्ली का टिकिट कराया और कम बैक हो गए।हमारी समस्या जस की तस।तीसरी मुंडी कहाँ से लाएँ?सभी आयोजकों को डॉ सुरेश अवस्थी जी ने वस्तुस्थिति साफ साफ़ बता दी। आयोजकों ने भी कोई पंगा खड़ा नहीं किया।आगामी कार्यक्रमों में कहीं आयोजक की कवयित्री बेटी वन्दना को दिन रात अभ्यास करवाकर काव्यपाठ करवाया, कहीं अमेरिका के स्थानीय कवि श्री अभिनव शुक्ल को आमंत्रित किया।छोटे भाई श्री अभिनव शुक्ल का सौहार्द पूर्ण व्यवहार सदैव स्मरण रहेगा। सेरीटोज में मेरे परिचित श्रीमती अंजू गर्ग एवं श्री सुनील गर्ग जी द्वारा आयोजित कवि सम्मेलन, साथ ही उनका अतिथि सत्कार तो हम कभी नहीं भूल सकते।अंजू जी,सुनील जी के साथ लासवेगास की शानदार ट्रिप ने हमारी अमेरिका यात्रा में चार चाँद लगा दिए।भाई अभिनव शुक्ल के साथ विश्व प्रसिद्ध हूवर डैम देखने गए साथ ही अड़तालिस डिग्री सेल्सियस की भयानक गर्मी में जिस गर्मजोशी के साथ हमने काव्य गोष्ठी की वो तो अपने आप में एक मिसाल ही है।
इस तरह सारे कवि सम्मेलन रिस्क लेते हुए राम राम राम राम जपते हुए सफलतापूर्वक सम्पन्न हुए। बहुत अच्छी यादें और ढ़ेर सारे अनुभव लेकर जब हम दोनों सकुशल भारत की राजधानी स्थित इन्दिरा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर लैंड हुए तब लगा
जान बची और लाखों पाए
लौट के रिस्की भारत को आए।

डॉ कीर्ति काले,नई दिल्ली
9868269259

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