क्षेत्रीय श्री गांधी आश्रम मगहर: बदहाली पर आँसू बहा रहा है

क्षेत्रीय श्री गांधी आश्रम मगहर: बदहाली पर आँसू बहा रहा है

विशेष रिपोर्ट

ब्यूरो|नवनीत मिश्र
संत कबीर नगर। “खादी वस्त्र नहीं विचार है!” के ध्येय वाक्य के साथ स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात सन् 1955 ई० में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी के स्वदेशी की परिकल्पना को साकार करने के लिए तत्कालीन बस्ती जनपद के मगहर रेलवे स्टेशन के पास लगभग 30 बीघे में क्षेत्रीय श्री गाँधी,मगहर का शिलान्यास प्रसिद्ध गाँधीवादी पं० विचित्र नारायण शर्मा ने किया था। 1955 से 2021 तक के इस लंबे सफर में गाँधी जी की स्वदेशी की परिकल्पना की स्थिति आज बिल्कुल बुजुर्गो वाली होकर रह गई है। सरकारें आती-जाती रहीं। गाँधी जी के नाम पर भाषणबाजी होती रही। लेकिन उनका सपना “गाँधी आश्रम” दिनों दिन अपनी पहचान खोता गया। कच्चे माल की कमी, पूंजी का अभाव, शासन की उदासीनता और आश्रम के जिम्मेदारों के चलते गाँधी आश्रम बंदी की कगार पर पहुंच चुका है। कभी हजारों लोग जो खादी वस्त्र व कुटीर उद्योग से जुड़े सामान बना कर एक स्वावलंबी राष्ट्र बनाने के साथ ही परिवार की आजीविका चला रहे थे। परंतु आज थम से गए हैं।
क्षेत्रीय श्री गांधी आश्रम, मगहर की दशा आज अत्यंत दयनीय हो गई है। आश्रम के कर्मचारी बताते हैं कि उन्हें समय से वेतन नहीं मिल पाता है। उनके परिवार के समक्ष आर्थिक संकट खड़ा हो गया है। गाँधी आश्रम चल नहीं रहा है, समस्याएं बढ़ती जा रही हैं। वहीं सेवानिवृत्त हो चुके कर्मचारियों का पीएफ भुगतान न होने के कारण उनकी दशा और भी दयनीय है।
कभी रंगाई, छपाई, पेराई, साबुन, अगरबत्ती निर्माण व सरंजाम विभाग आदि विभाग पूरी तरह बंद पडे़ हैं।
जानकार बताते बताते हैं कि गाँधी आश्रम 1981 तक सुचारु रुप से चलता रहा। जिससे क्षेत्र के सैकड़ों घरों को रोजगार मिलता रहा। यहां तैयार सामानों की मांग प्रदेश में ही नहीं देश के विभिन्न हिस्सों में थी। रेलवे, स्वास्थ्य व अन्य सरकारी विभागों में भी आपूर्ति मांग पर की जाती रही।
स्थापना के पश्चात क्षेत्रीय श्री गांधी आश्रम, मगहर के मंत्री रहे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पं० शिवकुमार पांडेय का कार्यकाल स्वर्ण काल रहा। उनके समय में आश्रम दिनों दिन उन्नति पर रहा। आश्रम का कार्यक्षेत्र लखनऊ से बलिया तक फैला था। आश्रम के विकेंद्रीकरण के कारण मात्र बस्ती जिला (अब बस्ती व संत कबीर नगर) ही मगहर के हिस्से रह गया। मातृ संस्था होने के सभी संसाधनों का बंटवारा तो हो गया परंतु जितने भी कर्ज व लोन थे सब इसी के हिस्से रह गया। कर्ज के बोझ से दबी संस्था और कर्मचारियों के निहित स्वार्थों के कारण जायज-नाजायज मांगो को लेकर बार-बार की हड़ताल ने आश्रम की रीढ़ तोड़ कर रख दी। जिसका खमियाजा यह हुआ कि अब आश्रम बंदी के कगार पर खड़ा है।
कभी यहाँ हजारों लोग काम करते थे। आज उनकी संख्या दहाई में पहुँच गयी है।
कभी खादी ग्रामोद्योग जगत में यह आश्रम ‘सोने की चिडिया’ के नाम से देश भर में विख्यात था। आज अपने बदहाली पर आँसू बहा रहा है।आवश्यकता है इस तरफ सरकारों के ध्यान देने की, जिससे क्षेत्रीय श्री गांधी आश्रम, मगहर पुन: अपने खोए गौरव को प्राप्त कर क्षेत्र के लोगों का रोजी-रोटी का साधन बन सके।

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