सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को एक जनहित याचिका दाखिल की गई जिसमें धार्मिक और धर्मार्थ चंदे के लिए समान संहिता की मांग की गई है। इसमें देशभर में हिंदू मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण और इसके विपरीत कुछ अन्य समूहों को अपने संस्थानों के प्रबंधन की अनुमति होने का हवाला दिया गया है। याचिका में दलील दी गई है कि हिंदुओं, जैनियों, बौद्धों और सिखों को भी मुस्लिमों, पारसियों और ईसाइयों की तरह अपने धार्मिक स्थलों की स्थापना, प्रबंधन और रखरखाव का अधिकार होना चाहिए।
भाजपा नेता और अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय की ओर से दाखिल और अधिवक्ता अश्विनी कुमार दुबे के जरिये दाखिल याचिका में कहा गया है, ‘अनुच्छेद 26 के तहत प्रदत्त संस्थानों के प्रबंधन का अधिकार सभी समुदायों के लिए स्वाभाविक अधिकार है। लेकिन हिंदुओं, जैनियों, बौद्धों और सिखों को इस सुविधा से वंचित किया गया है।’
याचिका के मुताबिक, देशभर में स्थित नौ लाख मंदिरों में से तकरीबन चार लाख सरकारी नियंत्रण में हैं। लेकिन चर्च या मस्जिद से जुड़े एक भी धार्मिक निकाय पर सरकार का नियंत्रण या हस्तक्षेप दिखाई नहीं देता। इसी कारण हिंदू धार्मिक एवं धर्मार्थ चंदा (एचआरसीई) अधिनियम, 1951 और समय-समय पर बनाए गए इसी तरह के अन्य कानूनों में बदलाव की जरूरत है।
याचिका के मुताबिक, यह कानून सरकार को मंदिरों और उसकी संपत्तियों पर नियंत्रण की अनुमति प्रदान करता है। मंदिरों पर करीब 13 से 18 फीसद सेवाकर लगता है। देश में करीब 18 ऐसे राज्य हैं जिनका हिंदुओं के धार्मिक संस्थानों पर नियंत्रण है। जब मंदिरों पर सेवाकर लागू किया जाता है तो यह बुनियादी रूप से अपने हितों की रक्षा करने के समुदाय के अधिकार और संसाधनों को छीनना है।
याचिका में कहा गया है कि मुस्लिमों और ईसाइयों की तरह हिंदुओं, जैनियों, बौद्धों और सिखों को भी अपने धार्मिक स्थलों की चल-अचल संपत्तियों के अधिग्रहण और उनका प्रबंधन करने का अधिकार है, सरकार इसमें कटौती नहीं कर सकती।